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Showing posts from January, 2018
अफूचा गोळी म्हणा , राजकारण म्हणा , पण हिंदू हाच परिवर्तन करणार जर हिंदू हिंदुस्थानी  गैर ब्राह्मण बहुसंख्य लोकांचा वास्तविक  धर्म नसता तर अप्ल्पसंख्याक वैदिक ब्राह्मण धर्मी लोकांना विजयाप्रत राजकारण करता आले असते का ? होय हिंदू म्हणजे राजकारण , पण हमखास विजय मिळवून देणारे राजकारण , ते विदेशी ब्राह्मीनाना कळले , धर्म म्हणजे अफूची गोळी , होय खरे आहे , ते विदेशी ब्राह्मीनाना कळले मात्र ते अफूच्या गोळी चे उदाहरण , हिंदू धर्म हे राजकारण म्हणणाऱ्या महाभागांना कळले नाही हे विस्मय कारक दुर्भाग्यच होय . आम्ही हिंदुस्थानी आहोत , हिंदू आहोत या बद्दल वादा चे काही कारण नाही , आमचा धर्म हिंदू आहे तो विदेशी  ब्राह्मीनाचा नाही . ब्राह्मीनाचा वैदिक ब्राह्मण धर्म होय ते तो नाकारत नाही आणि सोडायला तयार नाही .मग आमचा धर्म कोणता ? हिंदूच ! मग हा हिंदू धर्म कुठे सांगितलं आहे ? एवढाच विचार करायला हवा . हा हिंदू धर्म कबीरांनी त्यांच्या वाणीतून सांगितलं आहे जो होता , लोप पावला होता , तोच सांगितला . त्यालाच आंबेडकरांनी हिंदू कोडे बिल मध्ये विधी दिली . विधी म्हणजे कानून . हिंदू धर्म आहे ,विधी आ...
हम है इस देश के मालिक। नेटिविस्ट राउत लोग पंडितवादी कांग्रेस से तंग आगये थे , किसी गैर ब्राह्मण पार्टी को चाहते थे , बिच में बहुतसी गैर ब्राह्मण पार्टियों को वोट देकर गैर ब्राह्मण नेटिव लोगो ने उनको मजबूती भी दी थी।  उस समय एक और ब्राह्मण पार्टी बीजेपी उभर रही थी जिसके नाम पर केवल २ सांसद थे जब वो जनसंघ नाम से जानी जाती थी।  पंडित हटावो की मुहीम ताज हुवी , जनेऊ छोडो कहा गया, गैर ब्राह्मण पार्टिया बहुत सारे प्रदेशो में सत्ता में आये पर फिर विदेशी ब्राह्मण प्रेम ने उन्हें डुबो दिया।  ये गैर ब्राह्मण पार्टिया फिर कांग्रेस , बीजेपी से गठबंधन करने लगी , बीजेपी ने इसका फायदा उठाया गैर ब्राह्मण लीडर्स , कार्यकर्तवो को ब्राह्मण बेटिया देकर फुसलाने लगे , बीजेपी ताकतवर हुवी , गैर ब्राह्मण पार्टिया कमजोर होती चली गयी। वोटर जो गैर ब्राह्मण थे सोचने लगे जब ये लोग बाद में ब्राह्मण ,पंडित से हाथ मिलते ही है तो सीधे सीधे उन्ही ब्राह्मण , पंडित पार्टियों को क्यों ना साथ दे ? नतीजा आज गैर ब्राह्मण मूवमेंट ख़त्म हो गयी , सभी चाटुकारिता कर रहे है , कुछ उन ब्राह्मण , पंडितवादी पार्टी के मंत...
ब्राह्मण धर्म विरुद्ध हिन्दू धर्म : नेटिविज़्म नेटिविस्ट डी.डी.राउत ने अपने यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ नेटिविज़्म में यह विश्व को बताया है की नेटिविज़्म यह विश्व विचार सारणी है जो विश्व के सभी देश , विश्व के सभी नेटिव लोग अपने अपने देश में ऐसे बेझिजक लागु कर सकते है और अपने देश को , अपने देश के नेटिव लोगो को विदेशी उत्पीड़न , गुलामी से आज़ादी दिला सकते है। नेटिविज़्म के साथ साथ लोकल कंट्री की नेटिविटी यहाँ काम कराती है जिसे हम हिंदुस्तान में हिंदुत्व कहते है , दूसरे देश में वो उस देश के नाम से या संस्कृति , धर्म से जुडी हो सकती है। हिंदुस्तान ने नेटिविस्ट डी.डी.राउत ने नेटिविज़्म को अपना गुरु घोषित किया वैसा ही वो विश्व के सभी नेटिव लोगो का गुरु है तथापि , भिन्न भिन्न देशो में मार्गदर्शन वहा की नेटिविटी जिस नाम से जानी जाती है वही हो सकती है जैसे हिंदुस्तान में हिंदुत्व यह नेटिविटी है क्यों की विदेशी ब्राह्मण , विदेशी ब्रिटिश , विदेशी मोंघल , विदेशी ग्रीक , विदेशी ईरानी , पारसी आने के पहले सिंधु - हिन्दू संस्कृति से इस देश में हिंदुत्व ही नेटीवीटी रही है और कुछ लोग...
Barbarian Videshi Brahmins of Brahmin Dharm received Dharm knowledge from Native Hindu on Makar Sankrani day : On Makar Sankrati day foreigner Vishnu a Brahmin Religion persons received the knowledge of self from Native Lord Shiva , a Hindu Religion founder. This shows Foreigner Brahmin religion people were ignorant of high spiritual knowledge. Here is evidence: Makar Sankranti Festival Makar Sankranti Sun enters the Capricorn sign on 14th January. In south India, the Tamil year begins from this date. This festival is known as “Thai Pongal” in South India. Sindhi people call this festival as “Tirmauri”. This festival is known as “Makar Sankranti” in North India and “Uttarayan” in Gujarat. Other names of this festival are as follows: Lohri(13th January) in Punjab, Uttarayani in Uttarakhand, Uttarayan in Gujarat, Pongal in Kerala, Khichadi Sankranti in Garhwal. Beliefs Associated with Makar Sankranti According to one of the beliefs, lor...
सत्य   हिन्दू  धर्म  सभा  : आज  का  विचार  : स्वामी  विवेकानंद  जागतिक  धर्म  परिषद्  में  भाइयो  और  बहनो  कह  सके  क्यों  की  वे  सत्य  हिन्दू  धर्मी  थे  , ब्राह्मण  धर्मी  नहीं  : स्वामी  विवेकानंद  जागतिक  धर्म  परिषद्  , अमेरिका  में  गए  और  वह  अपना  धर्म  प्रवचन  देते  हुवे  सम्बोधन  पर  उपस्थित  लोगो  को  भाई  और  बहनो  कहा  सके  क्यों  की  वे  धर्मात्मा  कबीर  के  अनुयायी  और  सत्य  हिन्दू  धाम  के  अनुयायी  थे  न  की  ब्राह्मण  वैदिक  धर्म  के  . हमें  जानना  होगा  की  ब्राह्मण  धर्म  एक  अधर्म  है  और  वो  पवित्र  भाई  - बहन  के  रिश्त...
भारतीय : मूल भारतीय , प्रवासी भारतीय , विदेशी मूल के भारतीय , गैर भारतीय , दुश्मन भारतीय हमने यहाँ ५ प्रकार लिखे है।  आज ९ जनुअरी है।  सर्कार प्रवासी भारतीय दिन सं २००३ से मना रही है।  सर्कार कहती है ऐसी दिन गांधीजी १९१५ को साउथ अफ्रीका से भारत लौटे थे और फिर स्वतंत्रता संग्रम की बागडोर संभाली , भारत को आज़ादी दिलाई।  देश  के गद्दारो ने उसे ३० जनुअरी को गोली मारी , गाँधी मर गया , देश ने उन्हें राष्ट्रपिता माना। गाँधी एक गैर ब्राह्मण हिन्दू थे।  जनेऊ , चोटी पहले रखते थे , बाद में छोड़ दी थी।  विदेशी ब्रह्मिनो को और उनके ब्राह्मण  धर्म  को सनातनी  कहते  थे  और अपने आप को हिन्दू , हिंदुस्तानी।  . इस हिसाब से गांधीजी  मूल भारतीय थे , कुछ समय के लिए विदेश गए , फिर लौट आये।  अच्छी बात है। वह हमने जो ऊपर ५ प्रकार लिखा उसमे मूल भारतीय प्रकार में आते है जैसे भारत के अन्य सभी गैर ब्राह्मण आते है। डॉ आंबेडकर भी कभी पढ़ने के लिए गए थे , इंग्लैंड गए , अमेरिका गए वह वे प्रवासी भारतीय थे जो अपना काम खत होने के बाद वापिस आये...
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झुटा पेशवा : झुटा ज्ञानबा : मुग़ल  बादशाह को जुते पहनाने वाले दरबारी नौकर को मुग़ल लोग पेशवा कहते थे जो रोज बादशाह के जुते उतारते थे , पहनाते थे।  शिवाजी महाराज ने शुर सरदारों का अष्ट प्रधान मंडल बनाया था जो सभी तन्खा पाते थे।  पेशवा का काम था महाराज के जुते की रखवाली , पहनना , उतरना।  इस से ज्यादा कुछ नहीं।  यह नाम उन्हों ने मुग़ल , फ़ारसी से लिया था।  प्रधान मंत्री को वजीर कहा जाता है।  सेनापति को सिपाह सालार ! अष्ट प्रधान में पेशवा की कोई हैसियत हो ही नहीं सकती। ये तो वैसा ही हुवा जैसे ज्ञानबा की मेख यानि बढ़ा चढ़ा कर बताना जैसे ज्ञानबा को बताया गया था।  गीता का अनुवाद किसी और ने किया था मराठी में उसका परायण कहा जाता है ज्ञानबा किसी मंदिर में करते थे जिस में कोई मूल भारतीय आता जाता नहीं था या गैर ब्राह्मण लोगो को अनादर आना मना था।  ऊपर से ऐसे जुट गड़े गए जैसे ज्ञानबा ने दिवार चलायी , पेट की गर्मी से दोसे पकाये ,भैसे से वेद कहलावे। ये सब ज्ञानबा की मेख यानि झुट है।  वैसे ही पेशवा कोई बड़ा नौकर था ये भी झुट  है।  विदेशी ब्राह्मण ...